अश्क के काबिल पलकों को संभाल रखा है मोतियों को अभी तक सीप में डाल रखा है न जाने कब बरस जायें थर्राई आखे मेरी मैंने ही बहाने से उस वजह को टाल रखा है
दर्द का आलम आज सुहाना लग रहा है कोई अपना होकर भी बेगाना लग रहा है जिसकी परवाह में दिल पल-पल रहता है उसी को आज फिर अनजाना लग रहा है।
कोई दर्द की कहानी में जी रहा है कोई किसी की मेहरबानी में जी रहा है आलम ऐसा हो गया है जीने के लिए भीड़ में तन्हा जिंदगानी को जी रहा है ।।
बेवजह ख्वाब आते है दर्द मचल जाता है रात की तन्हाइयों में अश्क निकल जाता है मै बदलते वक्त में जीने की कोशिश करता हूँ वक्त है मुझसे पहले ही बदल जाता है
सफ़र जिंदगानी मेरा भी गुजर जाने दे बोझ तेरे कर्ज का है जो उसे उतर जाने दे मेरे दर्द की तुम कोई परवाह न करो टूटा हूँ सम्भालों न मुझे बिखर जाने दो
उसकी गली तक कोई डगर जाती नहीं हर सू ढूढंता हो वो नजर आती नहीं उसकी चाहत में इस कदर खो चूका हूँ इश्क की महफ़िल में भी तनहा हो चुका हूँ