न मोहब्बत रही न कोई चाहत रही उनकी खामोश नजरें फिर क्या चाहती हैं, बड़ी खुद गर्ज हैं कि वफ़ा चाहतीं है मेरे टूटे दिल से फिर दुआ चाहती हैं।

उसकी नजरो से फिर घायल हो जाने दे मुझको देकर दर्द उसे मुस्कराने दे, मेरी हालत पर उसको तरस आये न आये ऐ मेरे दिल दरवाजा खोल उसे आने दे ।

आईना टूट के बिखर गया होता अपनी सूरत से उतर गया होता मेरे दर्द के आंसूं अगर देखे होते, अपने टुकड़ों में फिर सवंर गया होता।।

दर्द की दुनिया से दिल आबाद नहीं है हसरतों के बंधन से आजाद नही  है जाने किस डगर से गुजर कर आया हूँ अबतो उनका भी पता याद नहीं है।।

हर रोज नए सपनों की आश रहती मिलता नहीं कोई दिलाशा मुझे, मै गुजर जाता हूँ समन्दर से होकर ओ भी रखना चाहता है प्यासा मुझे।

टूट कर फिर से संभलता नहीं है कोई दवा का असर चलता नहीं है, जखम गहरा है इसे यूं ही रहने दे दिल का मामला है ऐ बदलता नहीं है।।