जब भी मुस्कुरा के जीना चाहता हूँ दर्द के कांटे चुभने को दौड़ आते हैं सफर हम भी चाहते हंस के गुजर जाए लम्हे ताजा इम्तिहान को छोड़ जाते हैं ।।
दरिया गहरे समंदर का सहारा ढूंढती है डूब कर कश्ती अब किनारा ढूढती है सारी दुनिया में खुशियाँ लुटा करके दुखों के खातिर घर हमारा ढूंढती है।
मेरे दर्द को ये कैसी दवा दे रहा है जिन्दगी के जख्मों को गर्म हवा दे रहा है रुख मेरी तरफ मोड़ दिया गया है गमो का मेरी खुशियों को न जाने कौन सजा दे रहा है